Monday, November 14, 2011

Mera Mehboob

‎"दर्द -ए-दिल की कहानी भी वो खूब लिखता है
कहीं पर बे-वफ़ा तो कहीं मुझे महबूब लिखता है

कुछ तो रस्म-ए -वफ़ा निभा रहा है वो
हर एक सफ-ए-कहानी में वो मुझे मजनून लिखता है

लफ्जो की जुस्तुजू मेरे संग बीते लम्हों से लेता है
सियाही मेरे अश्क को बनाकर वो हर लम्हा लिखता है

कशिश क्यूँ न हो उसकी दास्ताँ-ए-दर्द में दोस्तों
जब भी ज़िक्र खुद का आता है वो खुद को वफ़ा लिखता है

तहरीरें झूट की सजाई है आज उसने अपने चेहरे पर
खुद को दर्द की मिसाल और कहीं मजबूर लिखता है"

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