Monday, November 14, 2011

Door Tak Reit Ke Samandar Hai

"कुछ अजब ज़िन्दगी के मंज़र है
दूर तक रेत का समंदर है

मेरी ही रौशनी के पैकर है
चंद शक्लें जो दिल के अन्दर है

दिल जो ठहरे तो कुछ सुराग़ मिले
क़र्ज़ किस किस नज़र के हम पर है

है बड़ी चीज़ नाज़ुकी दिल की
किस से कहिये की लग पत्थर है

खुल गयी आँख तो खुला हम पर
ख्वाब बेदारियों से बेहतर है

ख़ामोशी खुद है एक गहराई
चुप है जो लोग वो समंदर है

ज़ख्म पर क्या गुज़र गयी ज़िन्दगी
रेज़ा रेज़ा तमाम नश्तर है "

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