Monday, November 14, 2011

Lutne Hai To Yaha Aaiye

हम अब भी वही रूके है, वही पर ठहरे है,
जाते भी तो किधर जाते, यहाँ बहुत पहरे है.

किस आइने को अब मै सही मानू,
दिखते हर आइने मे, मेरे अलग-अलग चेहरे है.

जाइए कही और जाकर कीजिए फरियाद,
यहाँ का कानून अन्धा है, शहरे-काज़ी बहरे है.

किसी किसी पर ही बरसता है वो खुदाई नूर,
पढना आये तो पढ लीजिए मुझमे कौन सी मेहरे है.

मेरी तरह आप भी खुद को लूटा दीजिए,
देखिए, आप के हाथो मे अब भी चन्द मुहरे है.

खुदा उन आँखो को खूब रौशनी बख्शे,
जिन आँखो ने देखे, कल के सपने, सुनहरे है.

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